लेखनी कहानी -12-Apr-2022 शोर्ट स्टोरी लेखन # तेरे बिन
प्रेम की क्या परिभाषा दूं । मुझे तो सच्चा प्यार केवल राधा कृष्ण मे ही दिखाई देता है जब ही तो उन्हें युगल जोड़ी सरकार कहा जाता है ।कहते है प्यार का नाम त्याग है । क्या वास्तव मे उसने सच्चा प्यार किया था।
दिव्या की कालेज की पढ़ाई चल रही थी।सारा दिन कालेज और लाइब्रेरी मे ही बीत जाता था। साइंस साईट ले रखी थी उसमे तो सारा दिन किताबों के ऊपर ही पड़े रहना पड़ता था । दिव्या को आइना देखने की फुर्सत नही थी।सुबह बाल संवारती तो अगले दिन ही बाल संवारने के लिए आइना देखती थी।पर जब से लाकडाऊन लगा था तब से कालेज बंद थे। लाइब्रेरी भी नही जा पाती थी ।तो अकसर दिव्या शाम के समय टहलने के लिए छत पर चली जाती थी ।वह अकसर देखती थी उसके घर से सात आठ मकान छोड़कर ही कोई नये रहने वाले आये थे कालोनी मे । मम्मी अकसर बताती थी कि वो मकान खाली पड़ा है शायद अब कोई आ गया था उसमे। दिव्या अकसर देखती एक लड़का उसके हम उम्र ही होगा वह छत पर बैठ कर कोई किताब पढ़ रहा होता था।शायद वह भी लाकडाऊन के कारण घर पर ही पढ़ रहा था । दिव्या का ध्यान टहलने मे था पर बीच बीच मे उस लड़के पर भी नजर चली जाती थी दिव्या की।जब भी वह उधर देखती लड़का किताब की आड़ में उसे ही देख रहा होता।ये पहला अहसास था दिव्या का जब कोई लड़का उसे यूं छुप छुप कर देख रहा हो।उसके दिल की धड़कन बढने लगती जब वह देखता।अब तो दिव्या का हररोज का नियम हो गया था छत पर टहलने का ।अब वह शाम होते ही मुंह हाथ धोती , आईने के आगे खड़ी होकर संवरती और फिर छत पर जाती।वह लड़का भी जब तक दिव्या छत पर ना आती तब तक बेचैनी से छत पर टहलता पर जब वह छत पर आ जाती तो शांत होकर अपनी कुर्सी पर बैठ जाता और किताबों की आड़ मे उसे देखता।यह सिलसिला चल ही रहा था कि दिव्या के घर मेहमान आ गये सोई वह दो दिन छत पर ना जा सकी ।तीसरे दिन जब वह गयी तो वह लड़का बार बार उसकी छत की ओर उचक उचक कर देख रहा था। जब वह छत पर गयी तो उसने उसे देखकर सीने पर हाथ रखा।जैसे कह रहा हो"थैंक्स गॉड सब ठीक है।"दिव्या का भी यही हाल था वह मेहमानों के बीच बैठी भी उसे याद कर रही थी। दिव्या को ऐसे लगा जैसे वह लड़का रो रहा था क्योंकि वह बार बार आंखें पौंछ रहा था। तभी दिव्या से रहा नही गया उसने ऊपर छत पर पड़े कोयले से अपना फोन नंबर दीवार पर लिखा जिसे उस लड़के ने फटाफट अपने मोबाइल पर डायल किया।ये क्या दिव्या का फोन बज उठा।उसने धड़कते दिल से फोन सुना ।दूसरी तरफ से आवाज आयी,"हैलो मै शेखर । कहां थी आप इतने दिन आंखें तरस गयी आप को देखने के लिए।" तभी दिव्या बोली,"अरे अरे धीरे धीरे क्या हो गया आप को ।अभी तो जान पहचान भी नही हुई और आप इतने फ्रैंडली हो गये है।"
दूसरी तरफ से शेखर बोला,"सच बताइए क्या इन आंखों को ज़रूरत है फ्रैंडली होने की ।वैसे मै ऐसा वैसा दिलफेंक लड़का नही हूं पर जब से आप को देखा है मन किसी काम मे नही लगता।दो दिन से आप नहीं दिखी हमें तो ऐसा लगा जैसे किसी ने कलेजा निकाल लिया हो हमारा।कसम से जब आप को बिना देखे नीचे जाता था तो दिल रोने को करता था।"
दिव्या भी उसकी बातें सुनकर पिघल रही थी।तभी मम्मी की आवाज आयी नीचे से।"दिवू अब उपर ही घुमती रहोगी या खाना भी खाओगी।"मां की आवाज सुनकर उसने फोन डिस्कनेक्ट किया और नीचे आ गयी।शेखर उसे देखता रहा।
रात को डाइनिंग टेबल पर पूरा परिवार बैठा खाना खा रहा था तभी दिव्या के पिताजी बोले,"सुनती हो ये मनोहर ने ना मकान बेच दिया है और सुना है किसी हरिजन परिवार ने लिया है देखो अगर वो मकान के मूहर्त पर बुलाने आये तो तुम मत जाना ।हम उच्च वर्गीय ब्राह्मण है। धर्म भ्रष्ट हो जाएगा।"
दिव्या समझ गयी ये शेखर के परिवार की बात हो रही थी ।वह अंदर तक कांप गयी।उसे बहुत अच्छे से समझ आ चुका था कि शेखर और उसका मिलन इस जन्म में तो नही हो सकता। इसलिए उसने छत पर जाना बंद कर दिया ।चार पांच दिन बाद एक दिन शेखर का फोन आया।ये शुक्र था दिव्या उस समय अकेली थी घर मे ।उसने सोचा आज साफ साफ बात करके इस रिश्ते की यही इति कर देते है।उसने फोन उठाकर कह दिया कि हम पक्के गौड़ ब्राह्मण है तुम्हारा हमारा मिलन नही हो सकता ।ये कह कर बड़े भारी मन से अपनी आंखों को पोंछते हुए फोन रख दिया ।एक ही दिन की बात चीत ने उन दोनों को प्यार की मज़बूत डोर से बांध दिया था
शायद शेखर ये सदमा बर्दाश्त नही कर पाया और सातवें दिन उसके घर मे पंखे से लटकी उसकी लाश मिली।सारी गली मे कोहराम मच गया। दिव्या भी कही ना कही उसकी मौत का जिम्मेदार अपने आप को मानती थी।शेखर के मरने के पांचवे दिन दिव्या ने घर की छत से कूद कर जान दे दी।
दो पंछी इस जगत मे ना मिलकर दूसरे जगत मे मिल गये शायद।
Zainab Irfan
30-Apr-2022 02:28 AM
Very nice
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Sobhna tiwari
29-Apr-2022 09:53 PM
👏👌🙏🏻
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Seema Priyadarshini sahay
29-Apr-2022 08:41 PM
मार्मिक कहानी
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